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देश के 5 सबसे विवादित कानून Indians top controversial law

22:45:44
*ये हैं देश के 5 सबसे विवादित कानून, अटल से लेकर संजय तक हुए शिकार*

list of controversial laws in india

आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट को लेकर गंभीर बहस छिड़ी हुई है. एक तरफ लोगों का कहना है कि इससे सुरक्षा बलों को मनमानी की छूट मिल जाती है. वहीं इसके पक्ष में खड़े लोगों का कहना है कि अगर इसे हटा दिया जाता है, तो हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था खत्‍म हो जाएगी.
खैर, इस बहस का नतीजा जो भी हो, लेकिन हम आपके लिए यहां लेकर आए हैं 5 ऐसे कानून, जो हमेशा से विवादित रहे हैं. इनमें से कुछ अभी जारी हैं और कुछ रद्द हो चुके हैं.

*मीसा (MISA)*
मेंटेनेंस अॉफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट के नाम से इस विवादित कानून को 1971 में इंदिरा गांधी सरकार ने पास करवाया था. इसके बाद सरकार के पास असीमित अधिकार आ गए. पुलिस या सरकारी एजेंसियां कितने भी समय के लिए किसी की प्रिवेंटिव गिरफ्तारी कर सकती थीं, किसी की भी तलाशी बिना वारंट ली जा सकती थी. सरकार के लिए फोन टैपिंग भी इसके जरिए लीगल बन चुकी थी. अापातकाल के दौरान 1975 से 1977 के बीच इसमें कई बदलाव भी किए गए. 39वें संशोधन के जरिए इसे 9वीं अनूसूची में डाल इंदिरा ने इसे कोर्ट की रूलिंग से भी सुरक्षा दिलवा दी थी. 9वीं अनुसूची के कानूनों पर तब सुप्रीम कोर्ट रूलिंग नहीं दे सकता था. हालांकि अब ये बाध्यता हटा दी गई है.
आपातकाल के दौरान इसका जबरदस्त तरीके से दुरुपयोग किया गया. कांग्रेस और इंदिरा गांधी के विरोधियों को बिना किसी चार्ज के इस कानून के जरिए महीनों जेल में रखा गया. यहां तक कि विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेताओं को तक नहीं बख्शा गया. अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवानी, चंद्रशेखर शरद यादव और लालू प्रसाद सरीखे नेता इसी कानून के तहत जेल में रहे थे.
1977 में जनता पार्टी के सत्ता में आते ही उन्होंने इस कानून को रद्द कर दिया. इस कानून में आपातकाल के दौर में बंद लोगों को मीसाबंदी कहा गया. मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में इन्हें स्वतंत्रता सेनानियों की तरह पेंशन भी दी जाती है.

*TADA* (टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज) एक्ट
टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज नाम का यह कानून 1985 से 1995 के बीच लागू था. पंजाब में बढ़ते आतंकवाद के चलते सुरक्षाबलों को विशेषाधिकार देने के लिए यह कानून लाया गया था. संजय दत्त को इसी कानून के तहत पहले गिरफ्तार किया गया था.
1994 तक इस टाडा में 76166 लोग गिरफ्तार किया जा चुके थे. केवल 4% प्रतिशत लोग ही इसमें अपराधी साबित हुए, लेकिन इस कानून के कड़े प्रावधानों के चलते कई लोग इसमें सालों साल जेल में सड़ते रहे.

*POTA* (प्रिवेंशन अॉफ टेरेरिज्म एक्ट)
2002 में संसद पर हमले के बाद प्रिवेंशन अॉफ टेरेरिज्म एक्ट नाम से ये कानून पास किया गया था. टाडा की तरह यह भी एक आतंकवाद निरोधी कानून था. टाडा की तरह इसके जरिए भी सरकारी सुरक्षा एजेंसियों को असीमित अधिकार मिल गए थे. 2004 में इस कानून को रद्द कर दिया गया. उत्तर प्रदेश के मौजूदा मंत्री राजा भैया, तमिलनाडु के सीनियर नेता वाइको इस एक्ट में गिरफ्तार होने वाले प्रमुख नेता हैं.

वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एसएआर गिलानी को एक पोटा कोर्ट ने संसद पर हमले के आरोप में मौत की सजा दी थी, जो बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द कर दी थी.

*UAPA*
इसका पूरा नाम है अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट. यह कानून इंदिरा राज में 1967 में पास किया गया था और बीच में कई बदलावों के बाद आज भी जारी है. इस कानून के जरिए भी मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाया जाता रहा है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएन साईबाबा और कोबाड गांधी को इसी एक्ट में गिरफ्तार किया गया था.

*AFSPA*
जिस कानून को लेकर इस समय सबसे ज्यादा कोहराम मचा है, वो है आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट. हिंसाग्रस्त, आतंकग्रस्त क्षेत्रों में इस कानून को लगाया जाता है. अभी कश्मीर और पूर्वोत्तर के भागों में यह कानून लागू है. यह कानून 1958 में बनाया गया था.
इसमें घातक शक्ति (लीथल फोर्स), गिरफ्तारी और तलाशी के लिए सुरक्षाबलों को विशेष अधिकार मिल जाते हैं.
मणिपुर में इरोम शर्मिला इसी कानून के विरोध में साल 2000 के नवंबर से अनशन पर बैठी हुई थीं, जो 9 अगस्त 2016 को खत्म हुआ. अफस्‍पा से संबंधित मामलों की जांच के लिए संतोष हेगड़े कमेटी बनाई गई थी.